दोस्तों हम कहानियों के माध्यम से हमेशा कुछ न कुछ सीखते रहते हैं। हर कहानी का कोई न कोई अपना उपदेश जरूर होता है। आज मैं आप लोग के समक्ष एक ऐसी ही कहानी लेकर आई हूँ , जिसे पढ़कर आप "ज्ञान के महत्व" को समझ सकेंगे । इस कहानी से जो सीख हमें मिलती है वो है "अध्ययन करने कि जिज्ञासा" , जिसे संछिप्त में कहें तो, ज्ञानी कैसा होना चाहिए ? क्योंकि सागर के भाँति ज्ञान की भी कोई सीमा नहीं होती है।
तो चलिए बिना देर किये हम अपनी कहानी शुरू करते है---
एक कुएँ में एक मेढ़क रहता था। एक बार समुद्र का एक मेढ़क किसी तरह से कुएँ में आ पहुँचा , तो कुएँ के मेढ़क ने समुद्र के मेढ़क का हाल -चाल और अता -पता पूछा तो समुद्र के मेढ़क ने उसे बताया कि वह समुद्र में रहता था। तब कुएँ के मेढ़क को ज्ञात हुआ कि समुद्र तो बहुत हि विशाल होता है। तो उसने अपने कुएँ के पानी में एक छोटा-सा चक्कर लगाकर उस समुद्र के मेढ़क से पूछा कि क्या समुद्र इतना बड़ा होता हैं ? क्योंकि कुएँ के मेढ़क ने तो कभी समुद्र देखा हि नहीं था। तब समुद्र के मेढ़क ने उसे बताया कि इससे भी बड़ा होता है। कुएँ का मेढ़क चक्कर और बड़ा करता गया परंतु अंत में उसने कुएँ की दीवार के सहारे आखिरी चक्कर लगाकर पूछा -क्या इतना बड़ा है तुम्हारा समुद्र ?”
इस पर समुद्र के मेढ़क ने कहा नहीं इससे भी बड़ा है मेरा समुद्र।” अब तो कुएँ के मेढ़क को इस बात को सुनकर बहुत गुस्सा आ गया। क्योंकि कुएँ के सिवा उसने बाहर कि दुनिया तो देखी ही नहीं थी। इसलिए कुएँ के मेढ़क ने समुद्र के मेढ़क को कह दिया - “जा,तू झूठ कहता है कुएँ से बड़ा कुछ नहीं होता और समुद्र भी कुछ नहीं होता ,तू बेकार की बातें करता है।
कुएँ में मेढ़क वाली कहानी इस प्रसंग में सार्थक होती है कि जितना अध्ययन होगा उतना हि हमें अपने अज्ञान का आभास होगा। आज जीवन में हर मोड़ पर हमें ऐसे कुएँ के मेढ़क मिल जाएँगे ,जो सिर्फ यही समझकर बैठे हैं कि जितना वो जानते हैं,उसी का नाम ज्ञान है ,उसके सिवा यहाँ- वहाँ बाहर कहीं भी कोई ज्ञान नहीं है। लेकिन सत्य तो यह है कि सागर की भाँति ज्ञान की भी कोई सीमा नहीं है।
अपने ज्ञानी होने के अज्ञानमय भ्रम को यदि तोड़ना हो ,तो अधिक -से -अधिक अध्ययन करना आवश्यक है। जितना अधिक अध्ययन किया जाएगा ,भ्रम टूटेगा और ऐसा आभास होगा कि अभी तो बहुत कुछ जानना और सीखना बाकी है। हा इतना अवश्य निश्चित है कि अधिक -से -अधिक अध्ययन करते रहने से एक मानसिक तृप्ति,आनंद और शांती अवश्य प्राप्त होती है और इसी के साथ हि जिज्ञासा भी उत्पन्न होती है।
सही ज्ञान होने के कारण व्यक्ति की सोच को एक ओर नई दिशाएँ देता है, तो दूसरी ओर पुरानी मान्यताएँ दूर कर नई स्वस्थ मान्यताओं की स्थापना में भी सहायक होता है। आज हम भारत में बैठकर हम पश्चिमी अथवा अन्य किसी समाज या राष्ट्र की सभ्यता का तिरस्कार करते रहते हैं लेकिन जब उसी सभ्यता को हम अपनी आँखों से देखते हैं और उनके बारे में विस्तार से पढ़ते है ,तो हमारी सोच देखने और समझने कि बदल जाती है।
तो चलिए बिना देर किये हम अपनी कहानी शुरू करते है---
एक कुएँ में एक मेढ़क रहता था। एक बार समुद्र का एक मेढ़क किसी तरह से कुएँ में आ पहुँचा , तो कुएँ के मेढ़क ने समुद्र के मेढ़क का हाल -चाल और अता -पता पूछा तो समुद्र के मेढ़क ने उसे बताया कि वह समुद्र में रहता था। तब कुएँ के मेढ़क को ज्ञात हुआ कि समुद्र तो बहुत हि विशाल होता है। तो उसने अपने कुएँ के पानी में एक छोटा-सा चक्कर लगाकर उस समुद्र के मेढ़क से पूछा कि क्या समुद्र इतना बड़ा होता हैं ? क्योंकि कुएँ के मेढ़क ने तो कभी समुद्र देखा हि नहीं था। तब समुद्र के मेढ़क ने उसे बताया कि इससे भी बड़ा होता है। कुएँ का मेढ़क चक्कर और बड़ा करता गया परंतु अंत में उसने कुएँ की दीवार के सहारे आखिरी चक्कर लगाकर पूछा -क्या इतना बड़ा है तुम्हारा समुद्र ?”
इस पर समुद्र के मेढ़क ने कहा नहीं इससे भी बड़ा है मेरा समुद्र।” अब तो कुएँ के मेढ़क को इस बात को सुनकर बहुत गुस्सा आ गया। क्योंकि कुएँ के सिवा उसने बाहर कि दुनिया तो देखी ही नहीं थी। इसलिए कुएँ के मेढ़क ने समुद्र के मेढ़क को कह दिया - “जा,तू झूठ कहता है कुएँ से बड़ा कुछ नहीं होता और समुद्र भी कुछ नहीं होता ,तू बेकार की बातें करता है।
कुएँ में मेढ़क वाली कहानी इस प्रसंग में सार्थक होती है कि जितना अध्ययन होगा उतना हि हमें अपने अज्ञान का आभास होगा। आज जीवन में हर मोड़ पर हमें ऐसे कुएँ के मेढ़क मिल जाएँगे ,जो सिर्फ यही समझकर बैठे हैं कि जितना वो जानते हैं,उसी का नाम ज्ञान है ,उसके सिवा यहाँ- वहाँ बाहर कहीं भी कोई ज्ञान नहीं है। लेकिन सत्य तो यह है कि सागर की भाँति ज्ञान की भी कोई सीमा नहीं है।
“अधूरा ज्ञानी सबसे बड़ा बेवकूफ़ होता है,पूरा जानता भी नहीं और मानता भी नहीं”
सही ज्ञान होने के कारण व्यक्ति की सोच को एक ओर नई दिशाएँ देता है, तो दूसरी ओर पुरानी मान्यताएँ दूर कर नई स्वस्थ मान्यताओं की स्थापना में भी सहायक होता है। आज हम भारत में बैठकर हम पश्चिमी अथवा अन्य किसी समाज या राष्ट्र की सभ्यता का तिरस्कार करते रहते हैं लेकिन जब उसी सभ्यता को हम अपनी आँखों से देखते हैं और उनके बारे में विस्तार से पढ़ते है ,तो हमारी सोच देखने और समझने कि बदल जाती है।
“वो ज्ञान किस काम का, जो आपको ज्ञानी न बनाए”?

दोस्तों इस कहानी से एक नयी ऊर्जा , प्रेरणा मिलती है। इसलिए जीवन में हमेशा, हर जगह, हर पल, ज्ञान बटोरने कि कोशिश करें। स्वयं को दुनिया का सबसे बड़ा ज्ञानी समझने कि गलती या घमंड ना करें क्योंकि घमंड सिखने, समझने और ज्ञान प्राप्त करने के सभी रास्तों को बंद कर देता है।
अगर यह कहानी आपको अच्छी लगी हो तो अपने दोस्तों में जरूर शेयर करें और अपने कमेंट के माध्यम से हमे जरूर अवगत कराए,ऐसा करने से हमे और भी लिखने की प्रेरणा मिलती रहेगी।
its true life story without knowledge nothing else.
ReplyDeleteSuperb story.... Sheetal u r right without knowledge nothing else
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