यह एक महज Story नहीं है , अगर इस Story की तह में न जाकर सिर्फ सारांश एवं इसके भाव को समझे तो यह अति सकारात्मक एवं प्रेरणात्मक कहानी बन जाती है। कहानी कुछ इस प्रकार है कि एक बार T.N Sheshan ( मुख्य चुनाव आयुक्त - 1990 - 1996 ) अपने परिवार के साथ छुट्टियां बिताने के लिए कंही जा रहे थे। काफी दूर निकल जाने के बाद जंगल एवं आदिवसियों का छेत्र आ जाता है। वंहा से गुजरते समय उन्होंने देखा कि पेड़ों पर कई गौरैया के सुन्दर - सुन्दर घोसले बने हुए हैं। ( आप पढ़ रहें है - संस्कार क्या है ? हिंदी प्रेरणात्मक कहानी। ) .
यह देखते ही उनकी पत्नी ने कहा कि इन घोसलों को हम अपने घर पर ले चलेंगे और अपने घर को सजायेंगे। पत्नी की बात सुनकर T.N Sheshan की भी इच्छा हुयी , और उन्होंने साथ में जा रहे पुलिशकर्मी को घोसलों को ले आने के लिए कहा। उस पुलिशकर्मी ने तुरंत एक छोटे से लड़के को बुलाया जो वंहा पर अपनी बकरियों को चरा रहा था और उसे पेड़ों पर से दो घोसले तोड़कर लाने को कहा।
लड़के ने पुलिशकर्मी की बात सुनी और घोसलों को लाने से इंकार कर दिया। इस पर T.N Sheshan ने उसे 10 Rs देते हुए कहा कि ये लो पैसे अब तोड़कर दे दो। इस बार भी लड़के ने तोड़ने से मना कर दिया। लड़के की नां सुनकर इसबार उन्होंने 50 Rs देना चाहा , लेकिन इस बार भी लड़के का वही जवाब था कि वह ऐसा नहीं कर सकता।
पुलिशकर्मी तुरंत उस लड़के को डांटते हुए बोले कि क्या तुम्हे पता नहीं कि ये जज साहब हैं और तुम्हे अभी के अभी जेल में डलवा सकते हैं , तुम्हे अभी इसी वक्त उन घोसलों को तोड़कर लाना होगा। पुलिस की डाँट सुनकर वह लड़का डर सा गया और T.N Sheshan के पास जाकर बोला " साहब मैं ऐसा नहीं कर सकता , उन घोसलों में गौरैया के छोटे - छोटे बच्चे हैं। अगर उन घोसलों को मैं आपको दे दूंगा तो वे बच्चे बेघर हो जाएंगे और जो गौरैया अपने बच्चों के लिए भोजन की तलाश में बाहर गयी है वह जब वापस आएगी और बच्चों को नहीं पायेगी तो वह भी दुःखी होगी। और इस प्रकार इन सबका पाप मुझे लगेगा , इसलिए मैं ऐसा नहीं करूँगा। मुझे पापी नहीं बनना है। "
यह सुनकर T.N Sheshan दंग रह गए , उन्हें अपनी गलती का एहसास होने लगा। T.N Sheshan जी ने अपनी आत्मकथा में लिखा है कि "मेरी सारी शक्ति , स्थिति और IAS की डिग्री उस अबोध बच्चे के सामने फीका पड़ गया।"
उन्होंने आगे लिखा कि "जरुरी नहीं कि शिक्षा और महंगे कपडे मानवता की शिक्षा दे हि दें। यह बिलकुल आवश्यक नहीं है , यह तो भीतर के संस्कारों से पनपती है। दया , करुणा और दूसरों के प्रति प्रेम , सम्मान और सहयोग की भावना हमेशा बुजुर्गों द्वारा दिए संस्कारों एवं अच्छी संगत से आते हैं।
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