दोस्तों हम इंसानो में यह एक स्वभाव पाया जाता है कि बिना सोचे समझे हम दूसरों को गलत कह देते हैं। जबकि ठीक वैसी ही गलती हम करते रहते हैं। अपनी गलती को छिपाकर दूसरों को गलत कहना , कंहा तक उचित है ?
दोस्तों आज की यह कहानी , कुछ ऐसी ही है।
वह मक्खन गोल पेड़ों (एक तरह की मिठाई ) की शक्ल में बना हुवा था और हर पेड़े का वज़न एक किलो था। शहर मे किसान ने उस मक्खन को हमेशा की तरह एक दुकानदार को बेच दिया, और दुकानदार से चाय पत्ती, चीनी, तेल और साबुन वगैरह खरीदकर वापस अपने गाँव को रवाना हो गया।
ऐसा प्रतिदिन चलता रहा। एक दिन किसान के जाने के बाद दुकानदार ने मक्खन को फ्रिज़र मे रखना शुरू किया ही था कि उसे खयाल आया के क्यूँ ना एक पेड़े (मक्खन ) का वज़न किया जाए ?
और वज़न करने पर पेढ़ा सिर्फ 900 ग्राम का ही निकला। दूकानदार हैरत में पड़ गया। हैरत और निराशा से उसने सारे पेड़े तोल डाले मगर किसान के लाए हुए सभी पेढ़े 900-900 ग्राम के ही निकले।
अगले हफ्ते फिर किसान हमेशा की तरह मक्खन लेकर जैसे ही दुकानदार की दहलीज़ पर चढ़ा, दुकानदार ने किसान से चिल्लाते हुए कहा कि "तुम दफा हो जाओ , तुम बेईमान और धोकेबाज हो। मुझे किसी भी बेईमान और धोखेबाज़ मनुष्य से कारोबार करना नही है।"
अगले हफ्ते फिर किसान हमेशा की तरह मक्खन लेकर जैसे ही दुकानदार की दहलीज़ पर चढ़ा, दुकानदार ने किसान से चिल्लाते हुए कहा कि "तुम दफा हो जाओ , तुम बेईमान और धोकेबाज हो। मुझे किसी भी बेईमान और धोखेबाज़ मनुष्य से कारोबार करना नही है।"
दुकानदार अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए कहता है कि " तुमने 900 ग्राम मक्खन को पूरा एक किलो कहकर मुझे बेचा है।
किसान ने बड़ी ही विनम्रता से दुकानदार से कहा “मेरे भाई मुझसे बद-ज़न ना हो, हम तो गरीब और बेचारे लोग है, हमारी माल तोलने के लिए बाट (वज़न) खरीदने की हैसियत कहाँ। आपसे जो एक किलो चीनी लेकर गया था उसी को तराज़ू के एक पलड़े मे रखकर दूसरे पलड़े मे उतने ही वज़न का मक्खन तोलकर ले आता हूँ।"
दोस्तों, इस कहानी को पढ़ने के बाद आप क्या महसूस करते हैं, किसी पर उंगली उठाने से पहले क्या हमें अपने गिरहबान में झांक कर देखने की ज़रूरत नही ? कहीं ये खराबी हमारे अंदर ही तो मौजूद नही ? इसलिए अपने भीतर की कमजोरी की जाँच करें और किसी पर उंगली उठाने से पहले स्वयं कि कमजोरी को देखे।
दोस्तों, इस कहानी को पढ़ने के बाद आप क्या महसूस करते हैं, किसी पर उंगली उठाने से पहले क्या हमें अपने गिरहबान में झांक कर देखने की ज़रूरत नही ? कहीं ये खराबी हमारे अंदर ही तो मौजूद नही ? इसलिए अपने भीतर की कमजोरी की जाँच करें और किसी पर उंगली उठाने से पहले स्वयं कि कमजोरी को देखे।
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धन्यवाद !!!